An Unbiased View of bhairav kavach
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सिद्धिं ददाति सा तुष्टा कृत्वा कवचमुत्तमम् ।
इत्थं देव्या वचः श्रुत्वा प्रहस्यातिशयं प्रभुः ।
पातु मां बटुको देवो भैरवः सर्वकर्मसु ॥
नैऋत्यां क्रोधनः पातु उन्मत्तः पातु पश्चिमे
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ॐ पातु नित्यं शिरसि पातु ह्रीं कण्ठदेशके ॥ १०॥
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कार्य पर विजय प्राप्त करने के get more info लिए संसार में इससें बड़ा कोई कवच नही है।
ಬಂಧೂಕಾರುಣವಾಸಸಂ ಭಯಹರಂ ದೇವಂ ಸದಾ ಭಾವಯೇ
असीतामगह: सिरह पातु ललाट रुरूः भैरव्ह